गाँव के सुदूर कोने में एक छोटा सा कच्चा मकान था, जहाँ रामू अपने परिवार के साथ रहता था। रामू एक मेहनती मजदूर था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से गाँव में कोई काम नहीं था। खेत सूखे पड़े थे, और पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं उतरता था। रामू की पत्नी, सुनीता, हर सुबह खाली बर्तन लेकर चूल्हे के सामने बैठ जाती

गाँव के सुदूर कोने में एक छोटा सा कच्चा मकान था, जहाँ रामू अपने परिवार के साथ रहता था। रामू एक मेहनती मजदूर था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से गाँव में कोई काम नहीं था। खेत सूखे पड़े थे, और पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं उतरता था। रामू की पत्नी, सुनीता, हर सुबह खाली बर्तन लेकर चूल्हे के सामने बैठ जाती
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गाँव के सुदूर कोने में एक छोटा सा कच्चा मकान था, जहाँ रामू अपने परिवार के साथ रहता था। रामू एक मेहनती मजदूर था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से गाँव में कोई काम नहीं था। खेत सूखे पड़े थे, और पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं उतरता था। रामू की पत्नी, सुनीता, हर सुबह खाली बर्तन लेकर चूल्हे के सामने बैठ जाती

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